सफर - मौत से मौत तक….(ep-16)
नंदू अंकल और यमराज में शर्त लगी थी , की दो बच्चों को उनकी शैतानी की सज़ा मिलती है या नही। और शर्त हारने पर नंदू अंकल को यमराज को वो बात बतानी होगी कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यो कहा था कि शुक्ला जी जो प्रिंसिपल थे उन्होंने हिन्दी ले अध्यापक को बिना अच्छी खासी डिग्री के रख लिया क्योकि वो उनका साला था, अब यमराज का कहना है कि उसे रिश्तेदारी के खातिर रखा है जबकि नंदू अंकल कहते है अपने प्यार के खातिर।
खैर नंदू अंकल ने ऐसा क्यो कहा ये तो उनके शर्त हारने और जितने पर डिपेंड करता है, फिलहाल देखते है समीर और नवीन को जोशी जी क्या सजा देते है।
नवीन और समीर दोनो ब्लैकबोर्ड के सामने खड़े थे।
"ऐसे कैसे होगी पढ़ाई, जिंदगी में कुछ नही कर पाओगे बेटा… जिंदगी में कुछ करना है तो रुचि को पहचानो….वो छह में पढ़ने वाली लड़की रुचि को नही बल्कि अपने अंदर की रुचि को….क्या करना है जिंदगी में, किस रास्ते मे चलना है….अगर अभी से एक सपना लेकर चलोगे तब ही वो पूरा होगा, कोई भी सपना अचानक पूरा नही होता, एक सदी गुजर जाती है उसे पूरा करने में, इसलिये वक्त रहते सपने को पूरा करने की कोशिश करेंगे तब जाकर उसको पाने की उम्मीदें नजर आती है" जोशी जी बहुत ही प्रेणादायी बाते बता रहे थे, जैसे हर एक शिक्षक पढ़ाई के बीच मे टाइम निकालकर कभी कभी बता ही देते है।
"तुम्हे अभी मेरी बात समझ नहीं आ रही होगी, लेकिन बाद में समझोगे जरूर… और कहोगे एक अध्यापक हमे ऐसा कहा करते थे……. मैं अपनी बात बताऊ तो एक बार मेरे एक गुरुजी थे, हमे विज्ञान पढ़ाते थे, उन्होंने कहा था की अगर इंसान अपनी गलतियों से सीखना शुरू कर दे तो उसकी गलती भी एक सबक बन जाती है, और सबक कभी बुरा नही होता, और अभी मैं आप दोनो की गलती का सबक तुम्हे जरूर सीखाऊँगा" जोशी जी ने कहा।
"हमे माफ कर दीजिए सर, गलती हो गयी" समीर ने माफी मांगते हुए कहा तो नवीन भी बोल पड़ा….
"जी सर अब से ऐसा नही करेंगे"
"मैं कैसे मान लूँ की अब आप ऐसा कुछ नही करेंगे….आपकी रुचि तो पढ़ने में है ही नही…." जोशी जी ने कहा और नवीन की तरफ उंगली करते हुए उसे अपने आगे बुला- "तुम्हारा नाम ना जाने क्यो भूल जाता हूँ मैं, मेरे पास आओ….क्या नाम है तुम्हारा"
"नवीन…. " नवीन ने जवाब दिया।
"कहाँ से आते हो?" जोशी जी ने फिर से सवाल किया।
नवीन ने डरते हुए जवाब दिया- "जी घर से"
"अबे गधे! घर से तो सभी आते है, तुम्हारा घर कहां है?" जोशी ने सवाल किया।
"मंडावली में है" नवीन बोला।
"और तुम?" अब जोशी सर् ने समीर की तरफ तरफ इशारा किया।
"जी मैं भी, मंडावली के पास से ही आता हूँ, इनका बाहर बाजार के पास है घर, मेरा अंदर दस नम्बर गली में है" समीर बोला।
"तुम तो अपने पापा के साथ आते हो ना रिक्शे में" जोशी जी ने समीर से कहा।
समीर को हल्की सी शर्म महसूस हुई और जवाब दिया- "जी सर"
"तो इसे भी ले आया करो अपने साथ…." जोशी जी बोले।
नवीन खुद पर गर्व करते हुए बोला- "लेकिन सर् मैं क्यो आऊंगा इसके साथ रिक्शे में, मेरे पास तो अपनी साइकिल है ना…. मैं तो इसे भी कहता हूँ सायकिल ले ले अपने लिए, हम दोनों साथ जाएंगे, मगर ये मानता ही नही"
"पापा क्या करते है तुम्हारे?" जोशी जी ने पूछा।
"जी रिक्शा चलाते है" समीर ने जवाब दिया।
"अरे आपसे नही इनसे पूछा नवीन से" जोशी जी बोले।
"पापा….पापा तो ऑफीस जाते है" नवीन बोला।
"आफिस तो जाते है लेकिन काम क्या करते है" जोशी जी ने कहा।
"पता नही" नवीन ने कहा।
"चलो कोई बात नही….तुम बताओ, तुम क्या करना चाहते हो बड़े होकर" जोशी जी ने नवीन से पूछा।
"पता नही" नवीन ने फिर वही जवाब दिया।
"कुछ तो सोचा होगा…. पापा कुछ तो बनाना चाहते होंगे आपको" जोशी जी ने सवाल किया।
नवीन ने आज तक कोई सपना नही देखा था, अपना आलीशान घर, मम्मी पापा और बहन का प्यार, ढेर सारे खिलौने, अच्छा खानपान , अच्छा रहन सहन और अपनी साइकिल….एक बच्चे के लिए यही सब सपना होता है जो उसके सभी पूरे हो रहे थे। फिर भला वो क्यो कोई सपना देखता।
"मुझे पापा ने कहा कि तू मुझसे भी बड़ा आदमी बनेगा…." नवीन ने जवाब दिया।
सब क्लास के बच्चे हंसने लगे। उन्हें देखकर जोशी सर भी मुस्करा दिए।
"कुछ नही हो सकता तुम्हारा, लगता है बस लंबाई चौड़ाई में पापा से बड़ा आदमी बनेगा" जोशी सर ने कहा।
"अच्छा समीर….तुम तो कक्षा के होशियार छात्र हो, तुमने तो कुछ जरूर सोचा होगा कि आगे चलकर क्या करना है?" जोशी जी ने सवाल किया।
"मैं….मैं क्या बनना चाहता हूँ….कुछ तो बनना चाहता हूँ सर….लेकिन नाम याद नही आ रहा" समीर बोला।
एक बार फिर पूरी क्लास हँसी से गूंज उठी।
जोशी जी ने पूरी क्लास को संबोधित करते हुए कहा- "हँसिये मत……आपकी भी बारी आएगी। चलो पूरी कक्षा में से किसी को पता है तो बताईये की वो भविष्य में क्या करना चाहता है"
अब पूरी क्लास ऐसे शांत हो चुकी थी जैसे क्लास में कोई है ही नही….
"क्या हुआ किसी को नही पता…… दुसरो का मजाक उड़ाना आसान है, लेकिन जब अपनी बारी आती है ऐसे ही सांप सूंघ जाता है" जोशी जी ने कहा।
सारे बच्चे उन्हें बैठकर सुन रहे थे, और समीर और नवीन खड़े होकर, और साथ मे हि नन्दू और यमराज भी खड़े थे।
"आपके बेटे ने बताया नही की वो क्या बनना चाहता है, क्या उसने कभी सोचा नही था उसने करना क्या है।" यमराज ने सवाल किया ।
"शायद इस उम्र में ख्वाहिशें और सपने बदलते रहते है, बच्चे हर रोज अपने सपनो को बदल लेते है, कभी उनका मन करता है क्यो ना देश का सिपाही बनूँ, कभी उनका मन करता है एक अच्छा डॉक्टर बनूँ, कभी वो पुलिस में सेलेक्ट होने के सपने देखते है तो कभी राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसा एक स्टार बनने के सपने देखने लगते है,और मेरा बेटा भी फिल्मो का शौकीन होने लगा था, उसे एक्टर बनने का भूत सवार हो गया था। लेकिन वो जानता था अगर उसने ये बात क्लास में सभी बच्चों के सामने बताई तो वो उपहास का पात्र बनेगा….लेकिन मैं जानता था उसके सपने क्या थे" नंदू अंकल ने कहा।
"लेकिन वो तो वकील है ना….??" यमराज ने सवाल किया।
"वक्त ने उसे समझा दिया था कि हर सपने साकार नही होते" नंदू बोला
तभी स्कूल की घंटी बज गयी, और मास्टर जी ने उन दोनों को बैठने को कहा- "देखो अभी मैं छोड़ रहा हूँ, लेकिन आगे से कोई शैतानी की तो मैं कुछ नही बोलूँगा मेरा डंडा बोलेगा"
समीर और नवीन मन ही मन खुश थे, लेकिन अभी जब तक मास्टरजी बाहर नही जाते तब तक एक्टिंग जारी रखनी थी कि उन्हें बहुत पछतावा है और वो आगे ऐसा नही करेंगे। लेकिन जैसे ही जोशी जी क्लास से बाहर गए, दोनो उधम मचाते हुए अपने जगह पर वापस गए और सभी बच्चे आपस मे इस तरह बात करने लगे जैसे ढेर सारे पक्षी जंगल मे चहक रहे हो,
नंदू और यमराज भी समीर और नवीन का डांस देखकर हँस पड़े और बाहर को जाते हुए यमराज ने नंदू से पूछा - "अब तो आप शर्त हार चुके है। अब बताईये मुझे जो अपने बताना है"
"तुम तो पीछे ही पढ़ जाते हो यार…… उन दोनो के बीच रिश्तेदारी निभाई जा रही थी या मोहब्बत….इसका आसान सा जवाब है मोहब्बत….क्योकि शुक्ला जी ने राणा जी से कहा था कि तुम्हारी दिदी के कहने पर तुम्हे बिना डिग्री के मैंने हिंदी का अध्यापक नियुक्त किया है…. उसकी दिदी मतलब शुक्ला जी की पत्नी…. और एक पति अपनी पत्नी की बात दो ही कंडीशन में मानता है, एक यदि वो अपनी पत्नी से बेइंतहां मोहब्बत करता है, और एक जब वो अपनी पत्नी से बहुत डरता है" नंदू ने जवाब दिया।
"तो मोहब्बत ही क्यो….ये डर भी तो हो सकता है" यमराज ने कहा।
"कभी तो कुछ अच्छा सोच लिया करो, आपने सिर्फ बात में सुनी, लेकिन लफ्जो का खेल होता है, बोलने का तरीका एक अलग सलीका होता है, मैंने समझा है उनकी बात को, और मोहब्बत को खोने से ज्यादा डर कभी किसी को नही लगता, अगर वो डर भी था तो भी मोहब्बत ही है" नंदू ने कहा।
यमराज ने नंदू की बात सुनी तो हाथ जोड़ते हुए बोला- "बातो में मैं आपसे नही जीत सकता अंकल जी…"
नंदू भी हँस पड़ा।
नंदू और यमराज दोनो मस्ती करते हुए बाहर की तरफ चले गए….
"क्या बात बहुत खुश लग रहे हो आप" यमराज ने नंदू अंकल से पूछा।
"क्योकि अगला सीन बहुत सुखद है, मेरी जिंदगी का यादगार लम्हा…." नंदू ने कहा।
"वो सब तो ठीक है लेकिन हम जा कहां रहे है?"यमराज ने पूछा।
"कहीं नही" नंदू बोला।
"अजीब बात कर रहे हो अंकल, इतना खुश भी मत हो जाओ की आपको पता ही नही चल पा रहा कि हम कही जा रहे है" यमराज बोला।
"मेरा मतलब इस स्कूल परिसर में ही घूमेंगे आज….क्योकि अगला यादगार सीन दो घंटे बाद, इसी स्कूल में होना है" नंदू अंकल ने कहा।
"दो घंटे….लेकिन दो घंटे तक हम यहाँ करेंगे क्या…." यमराज बोला।
"चलो खेल के मैदान में चलते है….उधर एक बड़ा सा वृक्ष है उसके नीचे आराम करेंगे, क्योकि मुझे अभी आने में वक्त लगेगा" नंदू बोला।
"आपको……!….आपको कहाँ आने में वक्त लगेगा" यमराज ने फिर से सवाल किया।
"मेरा मतलब, उस रिक्शे वाले छोटे नंदू को आने में अभी वक्त लगेगा, तब तक हम दोनों पेड़ के नीचे विश्राम करेंगे" नंदु ने कहा।
"अच्छा अच्छा, चलो फिर विश्राम करने, मैं बहुत थक गया हूँ वैसे भी।" यमराज बोला।
दोनो पेड़ के नीचे बैठ गए। और इंतजार करने लगे नंदू के आने का।
बैठे बैठे दोनो उबासियां लेने लगे थे, नंदू अंकल को तो नींद ही आने लगी थी।
"अंकल जी….सो मत जाना.……याद है ना….परसों भी एक बहुत अच्छा सीन मिस कर दिया था आपने, ध्यान रखना रिपीट टेलीकास्ट नही आता जिन्दगी का कभी" यमराज ने कहा।
"मालूम है, जिंदगी में बिता हुआ लम्हा कभी लौटता नही,चाहे एक क्षण पहले की बात हो…. जैसे ही नंदू की रिक्शा आते दिखाई दे तो मुझे उठा देना" कहते हुए नंदू ने थोड़ी जमीन साफ किया और पत्ते बिछाते हुए अपने लिए सोने लायक जगह तैयार कर ली।
"चलो ठीक है, आप सो जाओ, लेकिन मुझे भी नींद आ जायेगी तो मत कहना…."कहते हुए यमराज ने अपना पीठ को पेड़ के तने के सहारे टिकाया और कुछ छोटे छोटे कंकड़ हाथ मे लेकर उन्हें थोड़ी दूर गिरे एक प्लास्टिक की बोतल पर मारने का प्रयत्न करने लगा।
नंदू तो पहले सो चुका था, कुछ देर में यमराज को भी नींद आ गयी। दोनो मस्त होकर इस तरह सो गए जैसे बहुत दिनों से सोये नही हों…।
पेड़ के नीचे शीतल छाया में जीवन और मरण के बंधन से मुक्त नंदू बहुत चैन और शुकुन से सोया था। ना किसी से चोरी होने का भय, ना किसी का मार डालने का डर, ना घर जाने की जल्दी, ना पैसे कमाने वाली मजबूरी, ना घर की कोई जिम्मेदारी।
पेड़ हवा की लहरों को भी ठंडा कर रही थी, बदले में हवा पेड़ से सूखी पत्तियां और सूखे लकड़ी के टहनियों को पेड़ से अलग करके गिरा रही थी, दोनो एक दूसरे की मदद कर रहे थे, हवा चाहकर भी खुद को खुद ठंडा नही कर सकती तो पेड़ बिना हवा का सहारा लिए अपने मर चुके पत्तो और टहनियों को नीचे गिरा सकती है।
लोग उस पेड़ के पास से गुजर रहे थे, कुछ लोग आकर बैठते तो कुछ थोड़ी देर खड़े होकर चले जाते, उन सबके लिए वहाँ सिर्फ एक पेड़ था पेड़ के शिवा कुछ भी नही।
तभी कुछ बड़बड़ाते हुए एक बुढ़िया उस तरफ आयी, यमराज ने धीरे से आंख खोली तो एक वृद्ध महिला गिरे हुए टहनियां उठा रही थी, उसकी कमर झुकी हुई थी , और चेहरे के साथ साथ हाथों में भी झुर्रियां थी। हाफ बाजू ब्लाउज के साथ एक बेढंगा से लहंगा पहना था, और साड़ी के नाम पर एक चुनरी लपेटी हुई थी। उसने हाथ की रस्सी पेड़ के जड़ के पास रखी और सूखे गिरे टहनियां उठाने लगी।
यमराज ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जो ये मौत के करीब होकर भी इतनी मेहनत कर रही है। यमराज हैरान था उस बुढ़िया ने देखते ही देखते एक गट्ठर लकड़ी का बना लिया था
"शाम को जलाने के लिए हो जाएगी, कल सुबह जलाने के लिए सुबह जल्दी उठकर कही और जगह जाना पड़ेगा, पता नही शाम को कुछ लाएगी भी या नही….अगर राशन ही नही लायी वो तो पकाएंगे क्या….सिर पकाएंगे अपना….इतनी लकड़ियां काफी नही है चौकीदार के आने से पहले थोड़ा और उठा लेती हूँ"
तभी दूर से स्कूल का चौकीदार चिल्लाते हुए आया,
"ओ बुढ़िया….फिर आ गयी तू….कितनी बार बोला है यहां से लकड़ियां मत ले जाया कर, हमे चाय बनानी होती है…" कहते हुए चौकीदार लकड़ियां छिनने के इरादे से बुढ़िया की तरफ आया।
बुढ़िया इधर उधर नजर दौड़ाने लगी शायद रस्सी ढूंढ रही थी, लेकिन जब रस्सी नही मिली तो उसने अपने बदन पर लपेटी चुनरी निकाल ली और जल्दी जल्दी लकड़ियों के गठ्ठर को बांधा और लकड़ी सिर पर रखकर वहाँ से भाग गई।
चाहता तो चौकीदार भागकर उसे पकड़ लेता, लेकिन शायद वो इतना भी निर्दय नही था, और उस बुढ़िया को वो अच्छे से जानता था, उसकी लाचारगी से वाक़िफ़ था। वो अपनी बेटी के साथ रहती थी, बेटी भी मजदूरी करती थी, सड़क निर्माण कार्य चलता तो पत्थर ढोती थी….और कभी किसी के फसल कटाई करती तो कभी कुछ….शायद गरीबी में खुद को संभाल नही पाई, या फिर कुछ बुरे लोगो से खुद को बचा नही पाई थी , बिन बियाही माँ बन चुकी थी। और अब एक बिनबियाही गरीब लड़की से कौन शादी करेगा, हाँ शोषण सब करते थे, कभी ठेकेदार तँग करता तो कभी कोई मजदूर….उसे ना चाहकर भी मजदूरी करने जाना पड़ता था। शायद यही कारण था उस बुढ़िया और उसकी बेटी समाज के लिए कलंक बन चुके थे। लड़की का छोटा सा आठ साल का लड़का जी एक जूते पोलिस करने वाली दुकान पर काम करने लगा था, लेकिन उसे दुकानदार काम के बदले में सिर्फ दो टाइम का खाना देता था। कभी कभी जब ज्यादा कमाई होती थी तो कुछ पैसे दे देता था, वरना बस दो वक्त खाना और हर वक्त डाँट ही खिलाता था। कई दफा तो उसे सड़को में भेज देता और कहता कि जो नजर आए जिद करने लगना पोलिस करने की।
"ए बाबूजी, ए बाबूजी, पोलिस करवा लो ना बाबूजी…. एकदम चमका दूँगा जूते" लड़का सड़क पर चलते हर व्यक्ति से कहता, चाहे उसके जूते पहले से चमक रहे हो, या उसले चमड़े के जूते ना होकर कपड़े के हो।
"मैंने नही करवाना, मैं घर पर खुद करता हूँ"
"बाबुजी, कल से कुछ खाया नही है, एक जूता ही करवा लो" लड़का जिद करते हुए बोलता।
"नही करवाना मतलब नही करवाना, आधा भी नही करवाना" कहते हुए आदमी चला गया।
अब लड़का सोचता कि सुबह से एक रुपया नही कमाया, मालिक पिटाई करेगा, अगर आज पैसे नही दिए तो वो कल कटोरी लेकर बिठायेगा पिछले हफ्ते की तरह, लड़के ने सोचा।
कुछ ऐसी कहानी थी बुढ़िया, उसकी कुंवारी बेटी और उसके पोते की।
यमराज ने भागते हुए बुढ़िया को देखा, बहुत फुर्ती थी उसमे, थोड़ी ही देर में वो स्कूल परिसर से बाहर जा चुकी थी।
और चौकीदार पेड़ के पास आकर उसकी रस्सी को जब्त करके ले गया।
तभी यमराज को नंदू का रिक्शा आता दिखाई दिया,
"ना जाने कौन सा हसीन सीन की बात कर रहा था नंदू अंकल…. " सोचते हुए यमराज ने नंदू अंकल को झकझोरा और उठाने लगा।
कहानी जारी है
🤫
20-Sep-2021 07:05 PM
बेहद खूबसूरत...भागती बुढ़िया और उसकी पोती...वेरी नाइस..!
Reply
Seema Priyadarshini sahay
14-Sep-2021 09:58 PM
बहुत ही खूबसूरत कहानी
Reply
Miss Lipsa
13-Sep-2021 10:46 PM
Wow...Superb
Reply